तू जबसे मेरी
तू जबसे मेरी ज़िन्दगी से अलग है
हर इक लम्हा जैसे ख़ुशी से अलग है।
ये बारिश, समंदर, नदी से अलग है
मेरी प्यास हर तिशनगी से अलग है।
पुरानी हवेली-सा दिल हो गया है
जो बस्ती में होकर सभी से अलग है।
किसी पर कहर बनके हालात टूटे
कोई-कोई अपनी ख़ुशी से अलग है।
मैं नेजों से घिरकर तेरा नाम ही लूँ
मेरी जिद मेरी बंदगी से अलग है।
वो तस्वीर है जाने किस डायरी में
तू जिसमें शमा, चांदनी से अलग है।
मिले हाथ भी और चले साथ भी पर
ये रिश्ता खरी दोस्ती से अलग है।
जहाँ लफ्ज़ डमरू के किरदार में हैं
सुखन मेरा उस शायरी से अलग है।
८ फरवरी २०१० |