दूर तक
दूर तक फैले हुए सहरा का मंज़र
देखना
और फिर नज़दीक आकर मेरे अंदर देखना।
उस मकां की खिड़कियाँ क्यों कुछ
दिनों से बंद हैं
उस मकां की सिम्त लोगों तुम बराबर देखना।
आज सबकी ठोकरों में हैं मगर कुछ
ग़म नहीं
देवता हो जाएँगे कल तक ये पत्थर देखना।
हश्र तक ज़िंदा रहे तेरा चलन
अहले-जहाँ
ग़मजदों की स्मित तेरा मुस्कराकार देखना।
कौन फेरे कर रहा है कू-ए-दिल
में इन दिनों
एक दिन तन्हाइयों तुम उसको छूकर देखना। |