हर तरफ़ हर तरफ़ यूँ बड़ा
झमेला है
हर कोई भीड़ में अकेला है
बदनसीबी ने खेल खेला है
आज मेरा हुनर अकेला है
उसके चेहरे का नूर क्या कहिए
जिसने हर गम ख़ुशी से झेला है
मिलते-जुलते रहो यहाँ सबसे
ज़िंदगी पल दो पल का मेला है.
अपना कोई नज़र नहीं आता
तूने किस दश्त में धकेला है
बारहा बिजलियाँ ना यूँ चमका
घर हमारा नया नवेला है
घेर रखा है रिन्दों ने कबसे
आज वाइज़ बड़ा अकेला है
३१ अगस्त २००९