तालाब में
दादुर कभी सूखे हुए
तालाब में दादुर नही आते,
सड़ा हो बीज तो उस बीज में अंकुर नही आते।
कला की साधना में उम्र सारी बीत
जाती है,
हवा के फूँकने से बाँसुरी में सुर नहीं आते।
भले हो उर्वरा धरती भले अनुकूल मौसम
हो,
करेले की लताओं पर कभी माधुर नहीं आते।
अगर इक पाँव को बैसाखियों की हो गई
आदत,
थिरकने के लिए उस पाँव में नूपुर नहीं आते।
यहाँ उस आदमी को कामयाबी मिल नहीं
सकती,
जिसे इक झूठ सच में ढालने के गुर नहीं आते।
बचाने के लिए इज़्ज़त कभी धनिया
नहीं मरती,
अगर उस रात घर में गाँव के ठाकुर नहीं आते।
हमेशा उर्स पर वह मारते रहते हमें
ताना,
कि 'भारद्वाज' तुम अजमेर या जयपुर नहीं आते।
२५ मई २००९ |