कागज़ पर भाईचारे
काग़ज़ पर भाईचारे के अक्षर दिखते हैं;
पर आँखों में शक हाथों में पत्थर दिखते हैं।
दिल से दिल के बीच बढ़ी है कोसों की
दूरी,
हाथ मिलाते चित्र महज आडम्बर दिखते हैं।
समझौता तो सद्भावों के बीच हुआ
अक्सर,
पर उस पर बंदूकों के हस्ताक्षर दिखते हैं।
धीरे-धीरे लौटी है रौनक बाज़ारों
की,
बस्ती में लेकिन उजड़े-उजड़े घर दिखते हैं।
दंगों के हालात नियंत्रित होते कुछ
दिन में,
आँखों में वर्षों दहशत के मन्ज़र दिखते हैं।
आग कहाँ करती है अंतर हिन्दू
मुस्लिम में,
उसको तो दोनों ईंधन के गट्ठर दिखते हैं।
जब से 'भारद्वाज' लगा है कर्फ्यू
बस्ती में,
घर में खाली डिब्बे और कनस्तर दिखते हैं।
१४ सितंबर २००९ |