अनुभूति में
चंद्रभान भारद्वाज
की रचनाएँ -
नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह
अंजुमन
में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी
रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में
संकलन में-
होली पर
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हर किरदार की अपनी जगह
यार की अपनी जगह है प्यार की अपनी जगह
ज़िन्दगी में तय है हर किरदार की अपनी जगह
ज़िन्दगी खिलते गुलाबों की कँटीली डाल है
फूल की अपनी जगह है खार की अपनी जगह
आप हैं और सामने है वक़्त की बहती नदी
पार की अपनी जगह है धार की अपनी जगह
कुछ सुलग कर बुझ गए हैं कुछ अभी सुलगे हुए
राख की अपनी जगह अंगार की अपनी जगह
अपनी लघुता आपकी गुरुता के आगे कम नहीं
है सुई अपनी जगह तलवार की अपनी जगह
सींचने पड़ते हैं पौधों की तरह रिश्ते यहाँ
मान की अपनी जगह मनुहार की अपनी जगह
बाँटने जब भी उजाला आई सूरज की किरण
हर गली में ही मिली अँधियार की अपनी जगह
चूड़ियाँ इक शौक भी है चूड़ियाँ इक रस्म भी
लोक रस्मों में बनी मनिहार की अपनी जगह
बल प्रदर्शन जाम धरनों के भरे माहौल में
भीड़ की अपनी है थानेदार की अपनी जगह
नेट हो स्मार्ट मोबाइल या टी वी सेट हो
चैनलों की भीड़ में अखबार की अपनी जगह
जो प्रतीक्षारत रहा है उम्र भर प्रिय के लिए
मन में 'भारद्वाज' है उस द्वार की अपनी जगह
१० नवंबर २०१४
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