अनुभूति में
चंद्रभान भारद्वाज
की रचनाएँ -
नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह
अंजुमन
में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी
रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में
संकलन में-
होली पर
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नाज है तो है
हमारे प्यार पर हमको अगर कुछ नाज है तो है
हमारी भी निगाहों में कोई मुमताज है तो है
जमाने के लिए राजा रहे हम अपनी मरजी के
हमारे दिल पे पर इक नाजनी का राज है तो है
दिया बन कर जले दिन रात उसकी मूर्ति के आगे
हमारे प्यार में इक सूफ़िया अंदाज है तो है
हमारा प्यार उठती हाट का सौदा नहीं कोई
बँधे अनुबंध में दुनिया भले नाराज है तो है
खुली है जिंदगी अपनी कहीं परदा नहीं कोई
अँगूठी में जड़ा उसका दिया पुखराज है तो है
हमारे प्यार का आधार बालू का घरोंदा था
हमारी आँख में वह आज तक भी ताज है तो है
उमर इक खूबसूरत मोड़ पर दिल छोड़ आई थी
दिशाओं में उसी की गूँजती आवाज है तो है
फुदकती ही रही हरदम हमारे प्यार की बुलबुल
अगर दुनिया का हर सैयाद तीरंदाज है तो है
न तो समझा रदीफों को न समझे काफ़िए हमने
ग़ज़ल में पर हमारा नाम 'भारद्वाज' है तो है
३१ अक्तूबर २०११ |