दुखों की भीड़ में
दुखों की भीड़ में थोड़ी खुशी थोड़ी
नहीं होती,
प्रणय की चार दिन की ज़िन्दगी थोड़ी नहीं होती।
घिरें काली घटाऐं और बिजली कौंधती
हो तो,
अँधेरी रात में यह रोशनी थोड़ी नहीं होती।
बरस कर स्वाति में इक सीप को मोती
बना दे जो,
तड़पती प्यास को वह बूँद भी थोड़ी नहीं होती।
समय की बाढ़ में सारे सहारे डूब
जायें जब,
तो तिनकों की बनी इक नाव भी थोड़ी नहीं होती।
विरह के तप्त अंगारे पचाने के लिये
केवल,
मिलन की एक मुट्ठी चाँदनी थोड़ी नहीं होती।
निगाहों से मिलीं हों ज़िन्दगी भर
नफ़रतें जिसको,
उसे संवेदना की इक घड़ी थोड़ी नहीं होती।
भरीं हों आँसुओं से रोज़ 'भारद्वाज'
जो आँखें,
उन्हीं की कोर काजल से अँजी थोड़ी नहीं होती।
१४ सितंबर २००९ |