अनुभूति में
चंद्रभान भारद्वाज
की रचनाएँ -
नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह
अंजुमन
में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी
रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में
संकलन में-
होली पर
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पीर अपनी लिखी
पीर अपनी लिखी जग व्यथा बन गई
आँसुओं की नई शृंखला बन गई
पीर बनवास में तो बनी जानकी
और रनिवास में उर्मिला बन गई
प्रेम में विष पिया पीर मीरा बनी
प्रेम अमृत पिया राधिका बन गई
राज वैभव विपुल छोड़ कर पीर खुद
बुद्ध की इक अमर आस्था बन गई
पीर आहत हुई तो बनी इक शिला
पीर चाहत हुई साधिका बन गई
पीर बदली बनी पीर बिजली बनी
पीर तारों भरी इक निशा बन गई
सात फेर लिये जब गहन पीर ने
ज़िन्दगी की सहज नायिका बन गई
प्राण में धड़कनों में बसी पीर जब
गीत की इक मुखर लेखिका बन गई
जब 'भरद्वाज' कोई दवा ही न थी
पीर ही पीर की इक दवा बन गई
१९
जुलाई २०१०
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