सुरज देवता
आये
जंगल-घाट सिहाये
धूप आरती हुई
गंध के पर्व हुए दिन
ओस-भिगोई
बिरछ-गाछ की साँसें कमसिन
हरी घास ने
इन्द्रधनुष हैं उमग बिछाये
बर्फ पिघलने लगी
नदी-झरने भी लौटे
हटा दिये किरणों ने
अपने धुंध-मुखौटे
भौरों ने हैं
गीत फागुनी दिन-भर गाये
पीली चूनर ओढ़
हवा ने रंग बिखेरे
व्यापे घर-घर
सरसों के रँग-रँगे उजेरे
1
ऋतु फगुनाई
बूढ़े बरगद भी बौराये
- कुमार रवीन्द्र |