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मित्र तुम्हीं से हर मौसम
 
मित्र‍, तुम्हीं से हर मौसम
जाड़ा, गर्मी, बरसात
हैं तुमसे ही सुबह-शाम
तुमसे ही हैं दिन-रात

खेतों में फूली सरसों
या महकी अमराई
उपवन की हर कली
अकारण थोड़े मुस्काई

ज़रा-ज़रा सी बातों के
पीछे है लम्बी बात

उगते हो तो भर देते हो
रंग दिशाओं में
दुनिया घूमा करते
बाँध उजाला पाँवों में

एक किरण पर तुलती है
अँधियारे की औकात

बिना तुम्हारे नहीं चलेगा
इस दुनिया का काम
उदित रहो या अस्त तुम्हें
है बारम्बार प्रणाम

तुम थे तभी हुई धरती पर
जीवन की शुरुआत

रविशंकर मिश्र रवि
१२ जनवरी २०१५

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