बादलों की धुंध में मुस्काए सूरज
खोल गगन के द्वार
धरा पर आए
गुनगुनाए धूप
आए स्वेटर सा आराम
अब तो भैया मस्ती में हों
अपने सारे काम
बाँध गठरिया आलस भागे
ट्रेन-टिकट कटाए
देखो
बादलों की धुंध में
शरमाए
अधमुंदे नयनों को खोले
सोया सोया गाँव
किरणें द्वार द्वार पर डोलें
नंगे नंगे पाँव
मधुर मधुर मुस्काती अम्मा
गुड़ का पाग पकाए
हौले
बादलों की धुंध में
कुछ गाए
- रचना श्रीवास्तव
१२ जनवरी २०१५ |