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सूर्य से नजरें मिलाकर
 
सूर्य से
नजरें मिलाकर
बात करना चाहता हूँ

तेज है उसका प्रबल
इस बात का
अहसास है
तपन में
महसूस होता
जानलेवा त्रास है

अनुसरण
सूरजमुखी का
फिर भी करना चाहता हूँ

जानता हूँ
सात घोड़ोंवाला
रथ भी खास है
राजपथ सा
रौंदता दिखता
वो नित आकाश है

भव्यता के
इस बवंडर
से उबरना चाहता हूँ

रश्मियों से बनी
वल्गा, हाथ में
निज थाम कर
हौसले को
स्वयं अपने
कोटि-कोटि प्रणाम कर

सारथी बन
साथ उसके
मैं विचरना चाहता हूँ

- ओमप्रकाश तिवारी
१२ जनवरी २०१५

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