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विजय पताका
 
विजय पताका लिए गगन में
नभ का पंथी दौड़ रहा
सीमा बंधन तोड़ रहा

जाल समेटा शीतल ऋतु ने
कोहरे ने अब मानी हार
छिप के बैठा गहन कुहासा
चूके पैने तीर प्रहार

दक्षिण से उत्तर को सूरज
भी अपना रथ मोड़ रहा
सीमा बंधन तोड़ रहा

धूप बुनेगी सोन झालरें
धरती अम्बर बाँधेंगे
पुरवा के संग उड़ते पंछी
नव कलरव सुर साधेंगे

दिवस रात के बँटवारे का
लेखा चंदा जोड़ रहा
सीमा बंधन तोड़ रहा

नील सुनहरी गगन पटल पर
किरणों ने संदेश दे दिया
उठो, भरो निज आस कलश को
नियति ने आदेश दे दिया

अँधियारी गलियों का रस्ता
दिन का प्रहरी छोड़ रहा
सारे बंधन तोड़ रहा

- शशि पाधा
१२ जनवरी २०१५

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