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तुझसे जीवन
 
तुझसे जीवन और जगत के
अँखुये पेड़ बने।

तेरी पहली किरण
और अम्मा का अर्घ्य चढ़ाना संग-संग
संस्कार, अध्यात्म, स्वास्थ्य
धरती पर रोज सजाना इस ढंग
तुझसे वर्षा, ग्रीष्म, शरद औ
हरियर पेड़ तने।

ताप, भाप पीकर धरती से
शीलन, काँदो -कीच मिटाता
प्यासी, जलती धरती पर तू
बादल की छागल छलकाता
होरी की आँखों सुख-सपने
उगते घने-घने।

पूजन, अर्चन, आराधन के
कारण, केंद्र, निवारण सूरज
दद्दा जी परभाती गाते
उलझे तंतु निवारण सूरज
दुःख की शीत रहे मुरझाये
सुख के ताप तने।

- राजा अवस्थी
१२ जनवरी २०१५

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