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सूरज ने आँखें खोली हैं
 
बदली का घूँघट खिसका कर
कोहरे की चादर सरका कर
सूरज ने आँखें खोली हैं

जैसे कोई शांत सभा में
मुकुट पहन राजा आ जायें
देख उजाला गौनहरी सब
सोन चिरैय्या राग सुनायें

ओस की बूँदें इन्द्रधनुष ले
हौले हौले से डोली हैं
सूरज ने आँखें खोली हैं

दौड़ रहे सूरज के घोड़े
भरी दुपहरी मैदानों में
पीत बरन सरसों की खुशबू
फ़ैली पूरे सीवानों में

बेलगाम घोड़ों के पीछे
बादल बच्चों की टोली हैं
सूरज ने आँखें खोली हैं

शाम हुई बरगदी शाख पर
थका हुआ आ बैठा सूरज
पल पल रंग बदलता पानी
बगुले का खोता है धीरज

जैसे झील उतरते सूरज
ने उसमें पलकें धो ली हैं
सूरज ने आँखें खोली हैं

- डॉ. प्रदीप शुक्ल
१२ जनवरी २०१५

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