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घर वापस आया सूरज
 
आ गयी संक्रांति फिर से गुनगुनी
क्या क्या करूँ मै

खिल उठा सूरज
पतंगें आसमाँ में उड़ रहीं हैं
रंग रंगों की छटाएँ
जा धनक से जुड़ रहीं है
तेरे रंगों से रंगी है कल्पना,
डूबा करूँ मै

सज रही अट्टालिकाएँ
झोपड़ी इक अधबनी है
चहकता भैया उछलता
एक गुड़िया अनमनी है
किस तरह से भेद सारे मिट गये,
पूछा करूँ मै

कोई तिल से स्नान करता
भूख तिल तिल कर न मरती
सूर्य तेरी रौशनी क्यों
कुछ ही गलियों से गुज़रती
किस तरह गुड़ की डली को अपने मुँह
घोला करूँ मै

- गीतिका 'वेदिका'
१२ जनवरी २०१५

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