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सूर्य आता है
 
नित नया सामान लेकर
सूर्य आता है

जिन्दगी सजती-सँवरती
रोज किरणों से
होड़ ये मन कर रहा है
आज हिरणों से
भर रहा कितनी कुलाँचें
हंस-सा उड़ता
चोट लगते ही कहीं पर
बैठकर कुढ़ता।
ढूँढने हर रोज किरणें
दूर जाता है

बेचता सामान फिरता
घूमता दिनभर
चल दिया है साँझ को वो
लालिमा लेकर
सब लुटा कर, ले चला है
चीज छोटी-सी
आज फिर, फिट हो गयी है
बात गोटी-सी
रागिनी के साथ मिलकर
राग गाता है
नित नया सामान लेकर
सूर्य आता है

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
१२ जनवरी २०१५

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