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शत शत वंदन सूर्य |
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परिवर्तन का हुआ इशारा
शत-शत वंदन सूर्य!
तुम्हारा।
उतरी ज्यों किरणों की डोली
भरी आस से भू की झोली
शीत, बर्फ, कुहरा घर लौटा
और बनी कुदरत हमजोली
गतिय हो चली जीवन धारा
शत-शत वंदन सूर्य!
तुम्हारा।
जोश जगाते हो जन-जन में
होश तुम्हीं से हर आँगन में
जोड़ प्रेम की डोर दिलों से
मुस्काते हो दूर गगन में
तुमसे तम टूटा, गम हारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।
कर्म तुम्हारा चलते रहना
धर्म तुम्हारा जलते रहना
धर्म-कर्म में बना संतुलन
नित नव-भोर निकलते रहना
रोशन है तुमसे जग सारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।
जब संक्रांति मकर में होती
पर्व क्रांति घर-घर में होती
ज्यों-ज्यों तुम चलते उत्तर दिशि
धरती नूतन आस सँजोती
तिल-तिल बढ़ता दिन बंजारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।
- कल्पना रामानी
१२ जनवरी २०१५ |
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