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कॉलोनी
के लोग |
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अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कॉलोनी के लोग
सम्बन्धों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपने में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कॉलोनी के लोग
महानगर की दौड़-धूप में
उलझी खुशहाली
जैसे गमलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढाई आखर जैसे
कॉलोनी के लोग
ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कॉलोनी के लोग
-योगेन्द्र कुमार वर्मा
'व्योम' |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त में-
हाइकु में-
पुनर्पाठ में-
पिछले
सप्ताह
३० अगस्त २०१० के
अंक में
जन्माष्टमी के
अवसर पर - शशि पाधा,
कमलेश कुमार दीवान,
गीता पंडित,
धर्मेन्द्रकुमार सिंह सज्जन,
मधु प्रधान,
संस्कृता मिश्रा,
माखनलाल
चतुर्वेदी,
संतोष कुमार सिंह,
डॉ. सुभाष राय,
मनीषा
शुक्ला,
राजेन्द्र पासवान घायल,
राणा प्रताप
सिंह, विष्णु विराट,
कुमार रवीन्द्र,
नवल किशोर,
किशोर पारीक किशोर,
पी दयाल
श्रीवास्तव,
रमेशचंद्र
शर्मा आरसी,
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,
भारतेंदु
श्रीवास्तव,
शरद तैलंग,
शंभुशरण मंडल,
उत्तम
द्विवेदी,
स्वाती
भालोटिया की रचनाएँ।
अन्य पुराने अंक
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