टेर रही कनुप्रिया
वंशीधुन खोई है सड़कों के शोर में
महानगर आ पहुँचा
यमुना के घाट तक
कभी यही वंशीधुन
गूँजी थी लाट तक
खोज रही कनुप्रिया
वृन्दावन बिला गया किस नगर अछोर में
हाट बने-महल बने
जिनमें आकाश नहीं
कट चुके कदम्ब सभी
सभागार बना वहीं
पूछ रही कनुप्रिया -
सूरज यह है कैसा- डूब रहा भोर में
कथा सुनी कल उसने
अँधियारे पाख की
देख रही उठती
मीनारें वह लाख की
डूब रही कनुप्रिया
बार-बार राख के समुन्दर घनघोर में
कुमार रवीन्द्र
३० अगस्त २०१० |