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वह मीरा अब मिलती है कहाँ

     

 





 

 


 




 

वह मीरा अब मिलती है कहाँ जो
बसो मेरे नैनन में नंदलाल कहे

हर फूल में देखे कान्हा को
हर डाली को मुरली बोले
वह रास कल्पना कर बैठे
जब वायु संग पत्ते डोले
काँटे जिसके लिये विरह
हर भँवरे को गोपाल कहे

वह मीरा अब मिलती है कहाँ जो
बसो मेरे नैनन में नंदलाल कहे

बदले ऋतु मौसम जाए
वह अपनी ही धुन में गाए
कोई दे विष का प्याला भले
वह अमृत कहकर पी जाए
एक बार दरस दो मधुसूदन
वह अश्रु से होय निहाल कहे

वह मीरा अब मिलती है कहाँ जो
बसो मेरे नैनन में नंदलाल कहे

जिसकी हर पीड़ा कान्हा हो
जो जीवन मृत्यु से होय परे
बस प्रेम की ही गागरिया हो
परम तीर्थ जिसके कान्हा
घरबार को जो जंजाल कहे

वह मीरा अब मिलती है कहाँ जो
बसो मेरे नैनन में नंदलाल कहे

मनीषा शुक्ला
३० अगस्त २०१०

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