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ओढ़ी जब से श्याम चुनरिया
     

 





 

 


 




 

ओढ़ी जब से श्याम चुनरिया
रोम-रोम
मृदु राग भरा है

चिर विरहिन
मीरा सा यह मन
प्राण राधिका तन वृन्दावन
रसना रटन लगी पी-पी की
स्वाति बिन्दु की तृष्णा जीवन
जल बिन विकल मीन सी तड़पन
चातक सा
अनुराग मिला है

पारिजात
सी गन्ध लिये वह
लगता जैसे आस-पास है
अब कितने अँधियारे घेरे
मन में चन्दा की उजास है
अविनाशी है प्रियतम मेरा
मुझको अचल
सुहाग मिला है

चन्दन
मय सिन्दूरी टीका
पग नूपुर, कर तुलसी माला
क्षितिज छोर अवनी-अंबर का
मिलन किसी ने सच कर डाला
इकतारा ले किया हाथ में
रसभीना
वैराग मिला है

---मधु प्रधान
३० अगस्त २०१०

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