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अरुण कुमार प्रसाद

 

 

 

हाइकु

उड़ी चिड़िया
वृक्ष कहीं न मिला
गिरी चिड़िया।

नदी मचली
आँसू से जब भरी
सागर चली।

भींगा कलम
रौशनाई से नहीं
आँसू से मेरे।

हाथ की रेखा
कुदाल पर घिसी
हो टेढ़ी-मेढ़ी।

अमीरी गर्व।
काश! गौरव होता।
सौरभ होता।

कूट की नीति
मानवता से तुली
झूठ निकली।

६ सितंबर २०१०

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