|
|
|
उतर आओ फिर
धरा पर, छोड़ कर आराम
बैकुंठवासी श्याम!
अब सुदामा कृष्ण के सेवक से भी दुत्कार खाते,
झूठ के दम पर युधिष्टिर अब यहाँ हैं राज्य पाते;
गर्भ में ही मार देते कंस नन्हीं देवियों को,
और अर्जुन से सखा अब कहाँ मिलते हैं किसी को;
प्रेम का बहुरूप धरके,
आगया है काम
देवता डरने लगे हैं देख मानव भक्ति भगवन,
कर्म कोई और करता फल भुगतता दूसरा जन;
योग सस्ता होके अब बाजार में बिकने लगा है,
ज्ञान सारा देह के सुख को बढ़ाने में लगा है;
नये युग को नई गीता,
चाहिए घनश्याम
कौरवों और पांडवों के स्वार्थरत गठबन्धनों से,
हस्तिनापुर कसमसाता और भारत त्रस्त फिर से;
द्रौपदी का चीर खींचा जा रहा हर इक गली में,
धरके लाखों रूप आना ही पड़ेगा इस सदी में;
बोझ कलियुग का तभी,
प्रभु पाएगा सच थाम
-- धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
३० अगस्त २०१० |