अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

कृष्ण
     

 





 

 


 




 

एक गीता भर नहीं व्यक्तित्व जिसका
भागवत से भी बड़ा है कृष्ण

वेद कहते नेति, श्रुतियां मौन रहती
अमृत का कंचन घड़ा है कृष्ण

चीखता कुरुक्षेत्र घायल कह रहा है
नीति के रथ पै चढ़ा है कृष्ण

विश्व का विष आचमन कर श्याम है जो
नाग के फन पर खड़ा है कृष्ण

एक हीरा मां यशोदा के हृदय का
गोपियों की नथ जड़ा है कृष्ण

मात्र ब्रजबाला नहीं, मुनि व्यास जैसे
पूंछते किसने गढ़ा है कृष्ण

शोधता ब्रह्माण्ड जिसको युग युगों से
गोपियों के पद-तल पड़ा है कृष्ण

-- विष्णु विराट
३० अगस्त २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter