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घनाक्षरियाँ
     

 





 

 


 




 

१ नंदलाल की बाँसुरी

हिय को आनन्द मिले, जीवन को गंध मिले,
खिल जाए मुरझी सी मन फूल पाँखुरी।
जीवन का सुन राग, जाग जाएँ सोये भाग,
दिशि दिशि छलके मधुर रस गागरी।
झूम के नचाए कभी, हिय हूक सी जगाए,
आत्मा प्रत्येक होय पिया प्रेम बाबरी।
बिन तप ब्रह्म मिले,मन ज्ञान दीप जले,
नन्दलाल गोपाल बाजाए जब बाँसुरी।


२ उद्धव लौटे मथुरा

प्रेम घाव लेके जब, लौटे मथुरा को तब,
ज्ञानी ध्यानी उद्धव से कान्हा कहने लगे।
जब से लौटे हो सखा गोपिन को ज्ञान देके
तभी से क्यों तुम खोए खोए रहने लगे।
गए कहाँ उपदेश, ज्ञान दीखता न शेष,
पांडित्य छोड़ बातें सीधी सादी कहने लगे।
हम तो ठहरे सखा पागल दीवाने पर,
आँखों से तुम्हारी क्यों ये आँसू बहने लगे।


३ कृष्ण की व्यथा

मथुरा में रहता है सुख का वसंत सदा
पर मेरे मन का सुमन खिलता नहीं।
विस्मृति के तप के प्रचण्ड ताप से भी,
बृज सुख सुधि का ये हिम गलता नहीं।
कृश्ण, बृजनाथ, दीनानाथ मुझे कहें सब,
पर किसी मुख से कान्हा निकलता नहीं।
मिलने को मिलते हैं व्यंजन अनेक पर,
रोटी में लगा हुआ माखन मिलता नहीं।

-- नवल किशोर
३० अगस्त २०१०

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