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तुमको खुद ही लड़ना होगा
     

 





 

 


 




 

बेबस हर मथुरा लगती है
पाश कंस का कसा हुआ है,
नीर सरोवर का ज़हरीला
नस-नस में अब बसा हुआ है

कहो कन्हैया इनसे कैसे?
निपट सकोगे निपट अकेले
छल-बल सब कुछ साथ इन्हीं के
खेल कुटिलता के ये खेलें

कपटी कौरव सभी मिटाए
फिर भी कपट अभी तक जारी
आँखों पर पट्टी बाँधे है
गांधारी बनकर लाचारी

गली-गली में जुआ ठगी का
लाखों शकुनि लिये हैं पासे
रूप अलग हैं, काम वही है
धोखा देकर सबको फाँसे

धृतराष्ट्र की न जकड़ छूटती
चूर-चूर कर डाली जनता
सिंहासन हैं बिल्कुल बहरे
नहीं किसी की कोई सुनता

चक्रव्यूह में घिरा अभिमन्यु
कौरव -दल से जूझ रहा है
खाली हाथ किधर है जाना
नहीं उसे अब सूझ रहा है

बाण भोथरे हुए पार्थ के
चक्र सुदर्शन लेकर आना
तुमको अब खुद लड़ना होगा
छोड़ सारथी का वह बाना

-- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
३० अगस्त २०१०

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