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प्रेम का दूजा नाम कन्हैया
पोर-पोर रस घोले
जग हो गया बिराना मीरा
भूली अपना गाँव,
गोप गोपिका तपें प्रेम में
ढूँढें कृष्णा छाँव,
नेह जहाँ वो है वृंदावन
आ रहीम मन बोले
पोर-पोर रस घोले
वही कदम्ब की डाली झूली
कृष्ण कभी ना भूली
यमुना के तट खेले मोहन
आज मैल और धूली,
रास रचाये हर राधा के
अंतर में आ डोले
पोर-पोर रस घोले
हर एक के ओठों पर मुरली
कान्हा की आ बाजे,
बजें शंख घङियल घण्टिका
एक सुर में मन साजे,
जलें दीप हर मन के द्वारे
दीप द्बीप जग हो ले,
प्रेम का दूजा नाम कन्हैय्या
पोर-पोर रस घोले
गीता पंडित
३० अगस्त २०१० |