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इस यमुना तीरे
     

 





 

 


 




 


क्षितिज पर लालिमा फैली
डुबकी ले रहा चाँद है
कमल के पट खोलते ही
देखो तो शरमा के ये
कुमुदिनी घूँघट ओढ़ती
सूरज रश्मियों के साथ
हे मुरारी तुम क्यों आये
इस यमुना के तीरे

देखो सखी कितना सुंदर
दिखता अपना यह श्याम
पाँव कोमल पंकज जैसे
कर जैसे पद्म के पात
अँखियाँ नील नीरज हैं
ओठ लगे कमल दल लाल
देह नील कमल-सी खिली
कटि लचके कमल के नाल
लगती मकरंद के जैसे
गले में वैजन्ती माल
गुन रही थीं सखियाँ मेरी
सुन रहा था मैं बतियाँ
अपनी छवि मैं देखन आया
इस यमुना के नीरे

हे सखि तुमने न देखी
सिर के काले बालों को
लगे जैसे भ्रमर घेरे
नील कमल के ऊपर हैं
हाँ सखि सच में देखो तो
मोहन ठाड़े हैं जल में
बगले खिले नील शतदल
पर पड़ती सूरज-किरनें
जैसे रेशमी पीत-पट
कमलापति-कौन-कमल सखि
होता विकट भरम यह है
उत्तम छटा शतशः मोहक
लखि छवि मोहन की रीझत मन
इस यमुना के नीरे

-- उत्तम द्विवेदी
३० अगस्त २०१०

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