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श्याम निंगोड़े ने |
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दधि लेकें जो मैं घर से निकरी,
वा ने आए अचक बहियाँ पकरी,
मरी लाज तैं मैं सिमटी सिकुरी,
कहँ धोती गई कहँ गई चुनरी,
मोहे छोड़ गईं सखियाँ सिगरी,
न जीते बने न सखी मैं मरी,
जा श्याम निंगोड़े ने ऐसी करी।
मेरी कौन सुने मैंने सब तें कही,
कसके बड़ी ढीठ ने बहियाँ गही,
मेरे नैनन से जल-धार बही,
नहीं एक सुनी मैंने कित्ती कही,
सौं नन्द-जसोदा की मैंने दई,
गगरी फोरी मेरो फैल्यो दही,
जा श्याम निंगोड़े ने ऐसी करी।
चितवै कजरीली चितवन तें,
कैसो जादू करयो मृदुमुस्कन तें,
सिसकी सी निकसी अधरन तें,
मदहोस कियो बंसी-धुन तें,
सौ बार जीई सौ बार मरी,
वा दिन तें न मैं घर तें निकरी,
जा श्याम निंगोड़े ने कैसी करी।
- रमेशचंद्र शर्मा “आरसी”
३० अगस्त २०१० |
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