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ब्रज की
माटी में जन्मे और खेले जसुदा के नन्दन
ऐसी माँटी को करता नित, बार-बार मैं अभिन्दन
ये ही माटी छुप-छुप खाई, गोपी चीर चुरइया ने
यहीं सुनाई धुन मुरली की, बलदाऊ के भइया ने
यहीं मिले धे त्रिपुरारी को, बालरूप में ब्रजनन्दन
श्री राधा के साथ यहीं पर, रास रचाया बनवारी
होरी खेली गोपिन के संग, भरि-भरि रंग की पिचकारी
यहीं किया संहार कंस का, यहीं कालिया का मर्दन
यहीं द्वारिकाधीश बिराजें, गोवर्धन महाराज यहीं
गोकुल और बरसाना प्यारा, नन्दगाँव की छटा यहीं
यही बिहारी जी भी काटें, सभी दुःखों के नित बन्धन
मधुर कंठ से गाये जाते, यहाँ रसखान सवैया भी
सूरदास ने पद गाये थे, नाचे कृष्ण- कन्हैया भी
कालिन्दी के तीर कदम्ब भी, महकें जैसे चन्दन
--सन्तोष कुमार सिंह
३० अगस्त २०१० |