कन्हैया तोरी बंसी भाग भरी
निसिदिन तेरे संग जिये वो
जब से अधर धरी
वृन्दावन की कुंज गलिन में
गोपिन रास रचाई
सात सुरों में गूँजे बंसी
झूमें कृष्ण कन्हाई
दूर खड़ी यशोदा मैया
नयनन स्नेह झरी
छू के बंसी राधे बोली
तू किसना अति प्यारी
श्वास-श्वास में तेरे मोहन
मैं तुझसे ही हारी
किस डोरी से बाँधे तूने
पूछत पहर-घरी
राधे- राधे गाए बंसी
कान्हा हिय हरषाय
मेरे मन की बूझी तूने
पुनि पुनि गीत सुनाय
तेरे सुर की राग -रागिनी
बाँधे प्रीत-लड़ी
-शशि पाधा
३० अगस्त २०१० |