अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
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प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
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माटी की गंध
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यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
गीतकार, चित्रकार, संगीतकार और अदाकार,
को देना पुरस्कार और सम्मान,
प्रकृति का मुख गंदा कर, उसे प्रदूषण का उपहार,
फाड़कर कपड़े उसके बदन के,
कर ओज़ोन परत में छेद,
इस तरह करना प्रकृति का अपमान,
क्या कर रहें हैं हम नेक ये काम?
प्रकृति भी है एक कुशल कलाकार,
अपने कैनवस पर बनाएँ हैं इसने
पहाड़, नदी, झरने,
जंगल और जानवरों के अनेकों प्रकार।
अदाकारी में भी प्रकृति का नही है कोई जोड़,
क्रोध को प्रकट करती है ये जब,
फूटता है एक ज्वालामुखी,
तब धरती का सीना फोड़।
ग़मगीन होती है ये जब,
आँसुओं से आ जाता है
एक सैलाब तब।
खुशहाली में लाती है ये बसंत,
खिल जाते हैं चहुँ ओर फूल ही फूल।
खिलखिला के जो ये हँसे,
बिखर जाए मादक खुशबू
और पवन चले झूम-झूम।
हृदय जब
इसका टूटे, पी जाए ये
अपने सारे गम,
पड़ जाए धरती में दरारें,
कहलाए ये अकाल,
सूख जाएँ सब तलैया-ताल।
अपने आँचल पर पड़ती मानव की,
लोलुपता भरी दृष्टि और रासायनिक खाद को
देख ये सिहर जाती है,
और इसके भूकंपीय
कंपन से,
धरती दहल जाती है।
बन एक संगीतकार,
कल-कल करते नदी,
झरनों का संगीत
ये सँजोती है,
बाँध बनने पर
अपने स्वरों को खो कर,
ये बहुत रोती है।
दोस्तों इस तरह
कर प्रदूषित,
जल, हवा, धरती
और आकाश,
कर रहें हैं हम
प्रकृति के इस
सुंदर चित्र को
बदरंग और धूमिल,
रफ़्तार अगर
यही रही तो फिर,
कल
रह न जाएगी ये दुनिया,
देखने के काबिल।
9 अगस्त 2007
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