अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
नई कविताएँ-
ट्रैफ़िक जाम
चेहरे पर
चेहरा
ज़िंदगी ऐसे जियो
धूम्रपान - एक कठिन काम
नारी समानता - एक परिवर्तन
नेता और नरक का द्वार
प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
भूत
हास्य
व्यंग्य में-
इंतज़ार
कौन महान
कविताओं में-
अंधकार
कौन है बूढ़ा
दीप प्रकाश
नव वर्ष का संदेश
नादान मनुष्य
परदेशी सवेरा
फ़र्ज़ तुम्हारा
भूख
मशहूर
माँ
माटी की गंध
मेरे देश के नौजवानों
यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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दीप प्रकाश
दीवाली का दिन था
और मैं था
अपनों से दूर
लगता था
शायद खुदा को
यही है मंजूर
जला दीपक को
याद कर रहा था
पुरानी यादों को,
उन झिलमिलाती
रोशनी और पटाखों
के शोर को,
दोस्तों के ठहाकों
और बड़ों के
स्नेह को
तभी अचानक
अंधेरा छा गया,
दीपक बुझ गया था
और मैं फिर से
तनहा हो गया था
पल भर में ही
प्रकाश से मैं
अंधकार में आ गया,
और जीवन की
इस क्षणभंगुरता का
ठंडा-सा अहसास
पा गया
दीपक बुझ गया
पर मुझे राह दिखा गया,
निस्वार्थ भाव से
कर्म करते हुए,
रोशन करो इस संसार को,
मिटा कर भेद
अपने पराए,
देश परदेश का,
निशि दिन
परोपकार तुम करो
24 जनवरी 2007
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