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विवाह

 

दीप प्रकाश‌

दीवाली का दिन था
और मैं था
अपनों से दूर‌
लगता था
शायद‌ खुदा को
यही है मंजूर‌
जला दीपक‌ को
याद‌ कर‌ रहा था
पुरानी यादों को,
उन‌ झिलमिलाती
रोशनी और‌ पटाखों
के शोर को,
दोस्तों के ठहाकों
और ब‌ड़ों के
स्नेह को
तभी अचानक‌
अंधेरा छा गया,
दीपक बुझ‌ गया था
और मैं फिर से
तनहा हो गया था
पल भर‌ में ही
प्रकाश‌ से मैं
अंधकार‌ में आ गया,
और जीवन‌ की
इस क्षण‌भं‌गुर‌ता का
ठंडा-सा अहसास‌
पा गया
दीपक‌ बुझ‌ गया
पर‌ मुझे राह‌ दिखा गया,
निस्वार्थ‌ भाव‌ से
कर्म‌ करते हुए,
रोशन‌ करो इस संसार‌ को,
मिटा कर‌ भेद
अपने पराए,
देश परदेश‌ का,
निशि‌ दिन‌
परोपकार‌ तुम‌ करो

24 जनवरी 2007

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