अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
नई कविताएँ-
ट्रैफ़िक जाम
चेहरे पर
चेहरा
ज़िंदगी ऐसे जियो
धूम्रपान - एक कठिन काम
नारी समानता - एक परिवर्तन
नेता और नरक का द्वार
प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
भूत
हास्य
व्यंग्य में-
इंतज़ार
कौन महान
कविताओं में-
अंधकार
कौन है बूढ़ा
दीप प्रकाश
नव वर्ष का संदेश
नादान मनुष्य
परदेशी सवेरा
फ़र्ज़ तुम्हारा
भूख
मशहूर
माँ
माटी की गंध
मेरे देश के नौजवानों
यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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नादान मनुष्य
नादान मनुष्य
कट रहे हैं पेड़
उजड़ रहा है जंगल,
जग में हो रहा
ये कैसा है अमंगल।
दिखाई दे रहा है
चारों ओर सिर्फ रेगिस्तान,
पर स्वार्थी मनुष्य को देखो
उसके चेहरे पर है मुस्कान।
बिगड़ जाए पर्यावरण का संतुलन
या फिर बिगड़े चाहे मौसम,
इन बातों का उसे नहीं है ग़म
उसे तो चाहिए सिर्फ धन।
देखो मनुष्य की नादानी
सोचता है नहीं है उसका नुकसान,
मार रहा है खुद पैरों पर कुल्हाड़ी
नहीं उसे है इसका ज्ञान।
अरे ओ नासमझ मनुष्य!
अपनी नासमझी को छोड़,
वर्तमान में फँसकर
तू भविष्य से यों न मुख मोड़।
तरसेगा तू दाने-दाने को
मिलेगा न तुझे पानी,
बात मान ले तू मेरी
छोड़ दे अपनी ये मनमानी।
24
सितंबर
2005 |