अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
नई कविताएँ-
ट्रैफ़िक जाम
चेहरे पर
चेहरा
ज़िंदगी ऐसे जियो
धूम्रपान - एक कठिन काम
नारी समानता - एक परिवर्तन
नेता और नरक का द्वार
प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
भूत
हास्य
व्यंग्य में-
इंतज़ार
कौन महान
कविताओं में-
अंधकार
कौन है बूढ़ा
दीप प्रकाश
नव वर्ष का संदेश
नादान मनुष्य
परदेशी सवेरा
फ़र्ज़ तुम्हारा
भूख
मशहूर
माँ
माटी की गंध
मेरे देश के नौजवानों
यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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कौन है बूढ़ा?
जीवन के सब रंग
देख चुका,
बैठा हूं
उम्र के आख़िरी
पड़ाव पर!
ढल चुकी
है काया
अपनों के बीच
में ही हो
गया हूं पराया।
सेवा निवृत्ति के बाद
अचानक-सा
सब बदल गया
घिरा रहने वाला
भीड़ों से
दिख रहा है आज
बिल्कुल अकेला।
वही है तन,
वही है काया
पल भर में ही
खुद को मैंने
उपेक्षित क्यों है पाया।
जटिल है स्थिति ये
समाधान की है
सिर्फ़ आस।
गूंज रहा है
प्रश्न ये,
मन में मेरे बार-बार,
क्षण भर पहले
भरा रहने वाला
अनंत ऊर्जा से
हो गया हूं
क्या मैं अब ऊर्जा हीन,
बूढ़ा, लाचार
और बेकार?
पर आज के युवाओं
में फैले इच्छाशक्ति
की थकान और
वैचारिक शिथिलता को
देखकर सोचता हूँ
कैसा है समाज
ये रूढ़ा,
कहना किसे चाहिए
और कह किसे
रहा है बूढ़ा।
24 जून
2006 |