अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
नई कविताएँ-
ट्रैफ़िक जाम
चेहरे पर
चेहरा
ज़िंदगी ऐसे जियो
धूम्रपान - एक कठिन काम
नारी समानता - एक परिवर्तन
नेता और नरक का द्वार
प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
भूत
हास्य
व्यंग्य में-
इंतज़ार
कौन महान
कविताओं में-
अंधकार
कौन है बूढ़ा
दीप प्रकाश
नव वर्ष का संदेश
नादान मनुष्य
परदेशी सवेरा
फ़र्ज़ तुम्हारा
भूख
मशहूर
माँ
माटी की गंध
मेरे देश के नौजवानों
यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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अंधकार
गगनचुंबी इमारतें,
चारों तरफ़ जगमग
प्रकाश है।
पर मन के भीतर
तुम देखो मानव
कितना अंधकार है।
दिन की रोशनी हो
चाहे हो सूर्य का
प्रकाश,
मन के दीप
जब तक न जले।
ये सब है अंधकार।
प्रज्वलित कर
दीप अंतर्मन का
कलुषित विचार
को त्यागो,
मन ज्योति से
रोशन कर
संसार से अंधकार
तुम मिटा दो।
16 अप्रैल
2006 |