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नेता और नरक का द्वार

एक बार ग़लती से नरक का द्वार रह गया खुला,
सारे नेता भाग कर स्वर्ग आने लगे,
स्वर्ग के पहरेदार उनकी भीड़ को देख, ग़श खाने लगे।
जल्दी ही नेता स्वर्ग में जनता के शासन की माँग
उठाने लगे,
और इंद्र की कुर्सी हिलाने लगे।
भोले स्वर्गवासी, नेताओं की हाँ मे हाँ मिलाने लगे,
और इंद्र के सर पे चिंता के बादल, मँडराने लगे।
समस्या का कैसे निकालें समाधान,
इस पर वो देवताओं से बतियाने लगे।
देख इंद्र की हालत नेता मुसकुराने लगे,
और इंद्र को दावत पे बुलाने लगे।
नेता, दावत में समझौते का प्रस्ताव पेश करने लगे,
और इंद्र को मानने के लिए दबाव, डालने लगे।

अंत में कोई रास्ता न देखकर
इंद्र ने हाँ के लिए गर्दन हिलाई,
और नेता लोग एक-दूसरे को, गले लगाने लगे।
समझौते का रहस्य जानने के लिए
लोग अकल लगाने लगे,
और नेता लोग स्वर्ग छोड़ के, जाने लगे।
कविता ख़त्म हो गई, और लोग उठ के जाने लगे,
और क्या था - समझौते का रहस्य?
"जानने के लिए पढ़ें अगली किस्त",
के विज्ञापन अंतरजाल पे आने लगे।

9 अगस्त 2007

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