अनुभूति में
अमित कुमार सिंह की रचनाएँ—
नई कविताएँ-
ट्रैफ़िक जाम
चेहरे पर
चेहरा
ज़िंदगी ऐसे जियो
धूम्रपान - एक कठिन काम
नारी समानता - एक परिवर्तन
नेता और नरक का द्वार
प्रकृति-प्रदूषण-कलाकार
भूत
हास्य
व्यंग्य में-
इंतज़ार
कौन महान
कविताओं में-
अंधकार
कौन है बूढ़ा
दीप प्रकाश
नव वर्ष का संदेश
नादान मनुष्य
परदेशी सवेरा
फ़र्ज़ तुम्हारा
भूख
मशहूर
माँ
माटी की गंध
मेरे देश के नौजवानों
यमराज का इस्तीफ़ा
रोज़ हमेशा खुश रहो
विवाह |
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मेरे देश के
नौजवानों
मेरे देश के नौजवानों
जागो नींद से अज्ञानता की,
आलस्य को तुम त्यागो।
मेरे देश के नौजवानों,
कर्मठता को तुम अपना लो।
देश के विकास में,
जुट जाओ तुम डटकर।
पीछे हटना न तुम,
बाधाओं से घबराकर।
देश को गौरव वापस दिलाना है तुम्हें।
एक बार फिर जगद्गुरु कहलाना है हमें।
तोड़ दो ये ज़ंजीरें भेदभाव की,
भड़कने न दो तुम ये आग सांप्रदायिकता की।
देश को एकता के सूत्र में पिरोना है तुम्हें,
आतंक हिंसा को जड़ से मिटाना है हमें।
देश में शांति का माहौल,
फिर से तुम्हें बनाना है।
नफ़रत की धरती पर,
देश प्रेम का पुष्प तुम्हें ही तो उगाना है।
देश को बुलंदियों तक पहुंचाना,
कर्म यही तुम्हारा है।
वतन के लिए मर-मिटना,
धर्म यही तुम्हारा है।
तुम्हारा एक ही मज़हब,
एक ही ईमान हो।
तुम भारतीय हो,
बस यही तुम्हारी पहचान हो।
24
सितंबर
2005 |