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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ओ फागुन के मीत
खोलें मन की गठरी कैसे
दिल मेरा बिन बात बसंती
धुनिया
फेंको अपना जाल मछेरा
बरसाने का हाल

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
ऐसे भी कुछ पल
चलो बचाएँ धरती अपनी
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तू मतलब का मूसल रे
तेरी पाती मिली
दरोगा जी
नौबजिया फूल
बाल मजदूर
बालकनी में
बेहतर दिन
यह तो देखिए
रोटी की चाह
वादों की मुरली

सजन तुम आ जाओ
हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

ओ फागुन के मीत

ओ फागुन के मीत
जरा गीतों में रंग उभरने दो

उनकी आहट से गमगम हैं
सपनों के सब द्वार प्रिय
उन द्वारों पर झूल रहे
पलकों के वंदनवार प्रिय

धड़कन की वरमाला से
इक बार सजन को वरने दो

बहुत जतन से उबरे हैं
विरहा के कुहरा पाला से
बाहर हम निकलें कैसे
संगम के चैन दुशाला से

गहरा हो संबंध यही
अनुबंध सजन से करने दो

अपनी पूजा अर्चन में
भूले से कोई भूल न हो
अपने अर्पण की कलियों में
संशय की अब धूल न हो

तिल तिल कर नेह समुंदर में
साजन संग उतरने दो

१५ फरवरी २०१७

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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