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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
तू मतलब का मूसल रे
दरोगा जी
बालकनी में
बेहतर दिन
सजन तुम आ जाओ

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
ऐसे भी कुछ पल
चलो बचाएँ धरती अपनी
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
नौबजिया फूल
बाल मजदूर
यह तो देखिए
रोटी की चाह
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

बेहतर दिन

जब देखो तब वो कहते हैं
ये बेहतर दिन आए हैं

रोटी तिमन दूर नजर से
नोन बनी मजबूरी है
महँगाई की दीमक अइसन
चाट गई मजदूरी है
मुफ़लिसी की जेठ में अपने
ख्वाब सभी कुम्हलाएँ हैं

ओला बारिश सूद वसूले
सूखा मूल उधारी है
वो ही जाने जिनपर इसकी
गाज गिरी बड़ भारी है
कितनों ने माहुर खाए
कितनों ने फाँस लगाए हैं

जनमत मानो पनहारन
ये सबकी प्यास बुझाये है
लेकिन इसकी प्यास जगे तब
पास न कोई आये है
इसकी खातिर बोल रहे हम
मंगलयान बनाए हैं

१ अक्तूबर २०१५
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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