चलो बचाएँ धरती
अपनी
चलो बचाएँ धरती अपनी
कुदरत की कश्ती अनमोल
खो न जाए बीच भँवर में
हो न जाए डाँवाडोलचलो
दोस्ती कर लें फिर से
जंगल और पहाड़ों से
दसों दिशाएँ भर जाएँ
निर्मल जल शुद्ध हवाओं से
तितली रंग भरे भौंरे
इस बगिया में गुंजार करें
पत्ते डोलें जड़ चेतन में
जीवन का संचार करें
गमगम सी सरगम लहराती
आए शाम सुहानी भोर
फूलों से खेलें होली
तारों संग दीवाली हो
धरती के आँचल में हरदम
लहराती हरियाली हो
साँझ ढले डालों पे पंछी
आएँ मीठी तान लिए
कोयल पंचम गीत सुनाए
आए नया विहान लिए
बहता जाए दरिया कलकल
बनी रहे जीवन की डोर
घुलमिल जाएँ वन जीवन से
आओ खुल के प्यार करें
भूल से न कोई कुदरत से
अब आगे खिलवाड़ करे
सूख न जाए सावन
सर्दी तप न जाए गर्मी से
मौसम न रच दे फिर कोई
साजिश और बेरहमी से
टूटे न ओजोन की छतरी
हो जाए न छलनी और
३१ मई २०१० |