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अनुभूति में शंभु शरण मंडल की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
ऐसे भी कुछ पल
ज्योति की खुशी
झूठी झूठी हरियाली
नौबजिया फूल
रोटी की चाह

गीतों में-
अपनी डफली अपने राग
एक सुबह फिर आई
चलो बचाएँ धरती अपनी
डोर वतन की हाथ में जिसके
डोलपाती
तेरी पाती मिली
बाल मजदूर
यह तो देखिए
वादों की मुरली

हे कुर्सी महरानी

संकलन में-
नया साल- एक नया पल आए
        - हो मंगलमय यह वर्ष नया
फागुन- आझूलें बाहों में
दीप धरो- ये कैसी उजियारी है
नयनन में नंदलाल- तुम्हीं ने
होली है- फागुन की अगुआई में
हरसिंगार- हरसे हरसिंगार सखी

 

ज्योति की खुशी

घर घर ज्योति की खुशी बोए
ऐसी कोई दिवाली हो

दिल के अनगिन कुह्लिए में
कुछ उपकारों के दीप जले
बाँट सके दुःख दर्द वही
अबसे दुनिया में रीत चले
ग़म के तम वापस आ न सके
रतिया वह एक निराली हो

जगमग हो माटी के कण-कण
चाहत की फुलकारी से
दहशत की दुर्गंध मिटे अब
दुनिया की फुलवारी से
द्वेष दमन का रोग न व्यापे
पग पग पर खुशहाली हो

उजियारों की महफिल में
कम से कम इतना नेम रहे
और वहाँ कुछ हो ना हो
बस मानवता की टेम रहे
अब ना उसकी ओर तनी
कोई बंदूक दुनाली हो

हों मुस्काने मनुहार भरीं
चेहरे पे चटख उल्लास रहे
पलकों पर नेह का सावन हो
अधरों में घुला मधुमास रहे
अन-धन कुछ पास रहे ना रहे
भावों में नहीं कंगाली हो

राम-रहीम हर धड़कन हो
नानक साँसों में वास करे
प्रेम सनेसा ईसा का फिर
घटघट में उजास करे
दंभ के बम बारूद मिटे
सुखचैन की फिर बहाली हो

१ दिसंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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