अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली है!!

 

फागुन की अगुआई में

सरसों सी मुस्कानोंवाली,
तीसी की तरुणाई में।
फिर सुंदर इक गीत सुनाएं
फागुन की अगुआई में।

सुनके नाचे सोन चिड़ैया
नाचे, तोता, मैना, मोर,
मन में नाचे प्रेम कन्हैया
चाहे शाम सुहानी भोर,
बांह पकड़ के बोले बैरी
चल चुपके अमराई में!

झरबेरी झुमके सा झूले
गुलमोहर से गाल हुए,
महुए सा मुस्काए जोबन
जी के हैं जंजाल हुए,
सिमटा जाए लाज का पहरा
इस पागल़ पुरवाई में!

सोते जगते संग सजन के
पायलिया झनकार करे,
खनके चूड़ी,कंगन सुनके
कोयलिया किलकार करे,
आते जाते लोग निहारे
घर, बाहर, अगनाई में!

गदगद हो गए बरगद पीपल
पर्वत पिघला जाए सखी,
पंडित ज्ञानी पीछे पड़ गए
जोगी जोग मिलाए सखी,
टूट रहे सब जप,तप संयम
एक मेरी अंगराई में!

--शंभु शरण मंडल
१४ मार्च २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter