उम्मीद नई
उत्कर्ष नया
हो मंगलमय
यह वर्ष नया
जब जब हम
तुमसे यार मिले
महसूस हो
पहली बार मिले
साँसो में
सरगम की लहरें
चाहत में
हो स्पर्श नया
अब द्वेष का लेश
न दिल में हो
दहशत न किसी
महफिल में हो
हर साँझ
अमन से हो रौशन
हर प्रात
लुटाए हर्ष नया
हर पल
संबल मुस्कान रहे
जिंदा हर इक
अरमान रहे
मंजिल की तरफ
एक और कदम
सपनों के लिए
संघर्ष नया
जो डाल
शजर से बिछड़ गए
जो फूल खिले बिन
बिखर गए
एक बार
उन्हें फिर संजोएँ
इस बार यही
विमर्श नया
मजहब जाति
के खोल न हो
बदनाम
हमारे बोल न हो
हर ओर फले
भाईचारा
हम सबका
हो आदर्श नया
शंभु शरण मंडल
३ जनवरी २०११ |