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हरसे हरसिंगार सखी

 

रतिया उनकी, बतिया सुनके
हरसे हरसिंगार सखी

यादों की
अमराई महकी, वादों के गुंजार उठे
पुरवाई की धुन पर जाने मन में
कितने ज्वार उठे मैं डूबी उतराई
जैसे नइया बिन
पतवार सखी

हरियर हरियर
दूब हुई अब सेज खुले अंबर नीचे
नेह बदरिया हुलस हुलस कर
प्यासे तन तरुवर सींचे खिलखिल कर
लोटे धरती पर सपनों के
कचनार सखी

बरसों बीते
रीते रीते अब जो पिया के संग हुई
कोरी चुनरिया पल में उनके
छूते ही सतरंग हुई
सांसे डोलीं अंदर बाहर बनके
वन्दनवार सखी

शंभु शरण मंडल
१८ जून २०१२

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