अनुभूति में
डॉ. सुरेन्द्र भूटानी की रचनाएँ
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यादों की अँधेरी
बंद गुफ़ाएँ यादों की
अंधेरी बंद गुफ़ाएँ
अपने माज़ी के हादिसों को
अपने में जज़्ब किए हुए है
तंज के नाखून लंबे हो गए हैं
और ख़ुद पे कभी कभी
दानिस्ताँ इस्तेमाल होते हैं
शब-हाय-फ़िराक़ की सियाहियाँ
दिल की तारीकियों से कम तो नहीं
हाँ कभी जली भी इक नन्ही-सी कंदील
चंद पल के लिए यहाँ भी
अब जिस्म मुसलसल सुलग रहा है
और एतराफ़ भी हो रहा है
ज़िंदगी की बदनसीबियों का भी अपना ग़रूर है
जब कोई रुसवा हो अपनी ग़ैरत से
अब कौन सँभाले बोझिल ख़यालों को
अहसासात अहसानों से दबे हुए
फिर इक सफ़रे-बेसूद की जानिब
चलते तो हैं फ़िसल जाने के लिए
उठते तो हैं निकल जाने के लिए
चंद लम्हों में फिर किसी शुफ़ा की
तारीकी में शरीफ हो जाएँगे
और मैं फिर तन्हा हो जाऊँगा
३१ अगस्त २००९
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