अनुभूति में
डॉ. सुरेन्द्र भूटानी की रचनाएँ
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शब्दार्थ-
तीरगी = अंधेरा, बेअमाँ= अथाह
ह्रदय, इख़्लाक = चरित्र,
क़बा = वस्त्र, बेदाद = अत्याचारी नगरी, निहाँ = छिपे दर्द की
तीव्रता, रायगाँ = व्यर्थ ह्रदय, उन्वाँ = शीर्षक, नादीदा = छिपे
हुए, दिलरुबा = दिल उड़ाने वाली, ख़लूस = शुद्ध ह्रदयता, फिदार
= चिंतन, क़ुर्बत = सामीप्य, तग़ाफ़ुल = उपेक्षा, माज़ी =
अतीत, रूदादें = कथाएँ
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बारह रुबाइयाँ
चिराग़ों का मुकद्दर खो गया है
उजालों से बेखबर हो गया है
दिल में तीरगी यों समाने लगी
हर चीज़ से बेअसर हो गया है
आँसुओं की ज़ुबाँ मालूम नहीं
हमको ये दास्ताँ मालूम नहीं
दिल मजलूम हो गया तो क्या ग़म
मगर दिले-बेअमाँ मालूम नहीं
एक ज़िंदगी में कई ज़िंदगी जी
गया
उल्फ़त के अहसानों का ज़हर पी गया
अपने इख़्लाक का कुछ तो अहसास था
क्यों खूँ में डूबी हुई क़बा सी गया।
बनाए रखो रंजिश पर ख़्याल हो
इतनी न बढ़े फिर कहीं मलाल हो
शहरे-बेदाद सही के शहर तो है
हर संग पे गोया कोई सवाल हो
परीशाँ तो हूँ
शिद्दते-दर्दे-निहाँ से मैं
अब और क्या कह सकूँ दिल रायगाँ से मैं
बहुत कुछ फ़साने कह चुकी है ये दुनिया भी
क्या तिरे फ़साने बनाऊँ इस उन्वाँ से मैं
जख़्म गहरे हैं दिल समंदर है
इक अजब दुनिया मेरे अंदर है
लोगों से मिलता रहता हूँ मैं
हर इक के पास छिपा खंजर है
तमाम उमर उसे अपनी यादों से
छूता रहा
हर घड़ी उसे अपनी फरियादों से छूता रहा
कुछ नादीदा न रहे ज़माने से मिटे आँसूँ
हाँ अपने अश्कों की रुदादों से छूता रहा
तुम दिलरुबा हो यह महज़ रुबाई
है
तेरे ख़लूस की झलक पाई है
जब भी अरमानों को समझा कभी
दिलदार की रूह नज़र आई है
नशा था कभी तेरी क़ुर्बत का
सितम अब बढ़ गया है फ़ुर्कत का
मजबूरी तग़ाफ़ुल न बन सकी
क्या करें हम शिकवा किस्मत का
ऱफ़्ता रफ़्ता इक ख़्वाब मरने
लगा है
माज़ी का आधा जवाब मरने लगा है
वो कोशिशें जो नाकाम तो न हुई अभी
हाँ एक दिले-इन्क़लाब मरने लगा है
कोई छीन न सका मुझसे तेरी यादें
तमाम उमर सुनता रहा तेरी रुदादें
बस अनजान-सी डगर को ज़िंदगी समझ बैठा
ज़िंदगी भर करता रहा तेरी फ़रियादें
हैफ़ तुझसे एक बार भी न बात हुई
गो आँखों आँखों में मुलाक़ात हुई
यों हज़ार बार ख़्यालों में आते रहे
बात बननी थी जब, तेरी वफ़ात हुई
२९ सितंबर २००८
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