अनुभूति में
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विरोध
मैं अपने देश के क्रांतिकारियों के
विरुद्ध हूँ
जो एक मुट्ठी अनाज के लिए
बच्चों के खिलाफ़ में एक बच्चे के हाथ में
हथगोले थमा देते हैं
मैं अपनी बहिन के विरुद्ध हूँ
जो बंदूक की नाली को अपनी बाँह समझकर
सब का विरोध करती है
अब एक मसीहा और क्या कर सकता है।
जब लोगों की आँखें
घुसपैठियों के गिरोह को पाने के लिए विवश हों
मैं बच्चों को अल्पायु में अभिनेता नहीं देखना चाहता
मेरा विरोध उन वृक्षों से है
जो बारूद के फूल महकाते हैं
उन शाखों से है
उन गुलाब की पंखुड़ियों से है
जो खंदकों में निरंतर बदल रही है
और सबसे है विरोध
बावजूद इसके यह आग मेरे दोस्तों को जला रही है
मेरा दिल, मेरे वतन बता
मैं इस कविता को कैसे बंदूक बनने से रोक दूँ
यह विरोध है या विरोधाभास?
२९ सितंबर २००८ |